
जमशेदपुर।शहर सिर्फ़ इमारतों, फैक्ट्रियों और रोशनी से नहीं बनता। शहर बनता है उन लोगों से, जिनकी कहानियाँ पीढ़ियों तक बहती रहती हैं। “ह्यूमन्स ऑफ जमशेदपुर” इस बार लेकर आया है एक ऐसी कहानी, जो सिर्फ़ एक व्यक्ति की नहीं बल्कि एक पूरे शहर की आत्मा को छू लेती है। यह कहानी है S.K. Zulfukar Ali की, जिनकी ज़िंदगी का सफ़र जमशेदपुर के इतिहास जितना ही पुराना और उतना ही संघर्षों से भरा है।
1919—शुरुआत दादा से, कहानी तीन पीढ़ियों तक फैली…
उनके दादा वर्ष 1919 में काम की तलाश में जमशेदपुर आए थे। फिर पिता ने भी यहीं से जीवन की नई शुरुआत की। लेकिन शहर ने 1964 में एक कड़ा मोड़ देखा। दंगों की वजह से परिवार को शहर छोड़ना पड़ा। लगता था कहानी यहीं खत्म हो जाएगी—लेकिन कुछ कहानियाँ लौटने के लिए ही लिखी जाती हैं।
1985—वो लौटा, जहाँ कहानी अधूरी रह गई थी
साल 1985, जेब में मुश्किल से 40-50 रुपये, दिल में बस एक बात दादा और पिता की शुरू की कहानी को मुझे आगे बढ़ाना है।वह फिर जमशेदपुर वापस आ गए।वही शहर, वही गलियाँ लेकिन इस बार इरादा बड़ा था।
सरकारी स्कूल का लड़का, अंग्रेज़ी से डरता था… लेकिन सीखने का जुनून सबसे बड़ा
उनकी पढ़ाई सरकारी स्कूल में हुई। अंग्रेज़ी से पहली पहचान “हेन” और “कॉक” से हुई थी।जमशेदपुर आकर लोग “चिकन” बोलते तो लगता—अभी तो बहुत कुछ सीखना बाकी है।
कोई कोचिंग नहीं, कोई गाइड नहीं
पुरानी किताबें, लोगों की बातें, और अनुभव—यही उनके सबसे बड़े शिक्षक बने।आज भी उनका मानना है कि सबसे बड़ा ज्ञान किताबों में नहीं, जीवन को देखना और समझना सिखाता है।
बेलडीह क्लब—जहाँ करियर ने ली नई दिशा
उन्होंने करियर की शुरुआत बेलडीह क्लब में एक कोच के रूप में की।दिलचस्प बात यह कि जिस खेल के लिए उन्हें रखा गया था, उसके बारे में शुरुआत में उन्हें कुछ पता ही नहीं था।उन्होंने साफ़ कहा मैं सिर्फ़ क्रिकेट और फुटबॉल जानता हूँ।लेकिन सीखने की चाहत ने उन्हें वहीँ स्थापित किया।बच्चों को ट्रेनिंग देते-देते उन्होंने अनुशासन, धैर्य और मानवता के असली सबक सीखें।
40 दिन की बच्ची—और एक पिता का सबसे बड़ा फैसला
उन्होंने एक बच्ची को महज़ 40 दिन की उम्र में गोद लिया।आज वह उनकी जान है, कॉलेज में पढ़ रही है और उनकी सबसे बड़ी गर्व की वजह है।उनकी एक पंक्ति दिल छू लेती है—“परिवार खून से नहीं, प्यार और जिम्मेदारी से बनता है।”
जमशेदपुर—उनके दिल का शहर, जिसे वे दुनिया में मिसाल बताते हैं
उनके लिए जमशेदपुर सिर्फ़ शहर नहीं, एक व्यवस्था है।एक आदर्श प्रणाली।सड़कें, सफाई, बिजली, पानी उनके अनुसार सबकुछ यहाँ सलीके से चलता है।वह कहते हैं जमशेदपुर वो शहर है जहाँ मेहनत करने वाला कभी खाली हाथ नहीं लौटता।
युवाओं के नाम संदेश—‘चलता है’ मत कहो, ज़िंदगी बदलनी है तो मेहनत करो
उनका संदेश सीधा और सटीक है “चलता है वाली सोच छोड़ो।फैसले और मेहनत भविष्य बनाते हैं, किस्मत नहीं।”
