
सरायकेला।कार्तिक पूर्णिमा के पावन अवसर पर बुधवार को सरायकेला और आसपास के क्षेत्रों में ओडिया समुदाय द्वारा पारंपरिक ‘बोइता बंदना उत्सव’ श्रद्धा, उल्लास और लोक-संस्कृति के रंगों के साथ मनाया गया। इस दौरान सुबह-सुबह लोग नदियों के तटों पर पहुंचे और केले के तने, कागज एवं थर्माकोल से बनी छोटी-छोटी नावों (बोइता) में दीपक, फूल और प्रसाद रखकर उन्हें खरकई नदी सहित विभिन्न घाटों में प्रवाहित किया।
समुद्री विरासत और सांस्कृतिक गौरव से जुड़ा पर्व
‘बोइता बंदना’ ओडिशा की प्राचीन समुद्री परंपरा और व्यापारिक इतिहास से जुड़ा उत्सव है। इसे ओडिशा की समुद्री गौरवगाथा “सद्भाऊना बोइता यात्रा” के रूप में भी जाना जाता है।इस दिन ओडिया समुदाय अपने पूर्वजों को याद करता है, जिन्होंने प्राचीन काल में दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों — जैसे इंडोनेशिया, थाईलैंड, मलेशिया, श्रीलंका और म्यांमार के साथ समुद्री व्यापारिक संबंध स्थापित किए थे।
केले के तने से बनी इन छोटी नावों को प्रवाहित कर लोग अपने पूर्वजों की समुद्री यात्राओं का प्रतीकात्मक स्मरण करते हैं।
भक्ति, गीत और हुलहुली से गूंजा माहौल
सुबह के समय श्रद्धालु परिवार सहित नदी तटों पर एकत्र हुए। महिलाओं और बच्चों ने नदी में स्नान के बाद सजाई हुई नावों को जल में प्रवाहित करते हुए पारंपरिक गीत —
“आ का मा बुई, पानो गुआ थोई…”
गाते हुए ‘हुलहुली’ की मंगल ध्वनियां और मंत्रोच्चार से वातावरण को भक्ति से भर दिया।इस दौरान पूरे घाट परिसर में दीपों की लौ और फूलों की सजावट से सुंदर दृश्य देखने को मिला।
‘बालुका पूजा’ के साथ की गई आराधना
बोइता प्रवाहित करने के बाद महिलाओं ने पारंपरिक ‘बालुका पूजा’ (रेत पूजा) की। इसमें रेत से शिवलिंग जैसी आकृतियां बनाकर भगवान शिव और भगवान विष्णु की आराधना की गई।श्रद्धालुओं ने घर-परिवार की सुख-समृद्धि और समाज में शांति की कामना की।
खरकई नदी के घाटों पर उमड़ा जनसैलाब
सरायकेला के खरकई नदी तट के अलावा कांटाडिह, चांदनी चौक, हल्दीपोखर सहित अन्य क्षेत्रों के घाटों पर भी सैकड़ों श्रद्धालुओं ने स्नान और पूजा-अर्चना की।लोगों ने दीपदान और दान-पुण्य कर कार्तिक पूर्णिमा के इस ‘देव दीपावली पर्व’ को हर्षोल्लास के साथ मनाया।
