
सरायकेला। झारखंड की पारंपरिक लोकनृत्य शैली सरायकेला छऊ एक बार फिर राष्ट्रीय मंच पर अपनी विशिष्ट पहचान दर्ज कराने जा रही है। भारत सरकार के सांस्कृतिक मंत्रालय के आमंत्रण पर, राजकीय छऊ नृत्य कला केंद्र, सरायकेला के पूर्व निदेशक और संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित गुरु तपन कुमार पटनायक के नेतृत्व में कलाकारों का दल 9 नवंबर को एकतानगर, कावेडिया (गुजरात) में होने वाले विशेष सांस्कृतिक कार्यक्रम में प्रस्तुति देगा।यह आयोजन एकता नगर स्थित “स्टैच्यू ऑफ यूनिटी” परिसर में आयोजित किया जा रहा है, जिसमें देशभर से पारंपरिक कला रूपों को आमंत्रित किया गया है। इस कार्यक्रम में सरायकेला छऊ नृत्य की मनमोहक प्रस्तुति झारखंड की लोकसंस्कृति और समृद्ध कलात्मक विरासत का प्रतिनिधित्व करेगी।
झारखंड के किसानों को समर्पित ‘माटीर मोनीषो’ नृत्य आकर्षण का केंद्र
गुरु तपन कुमार पटनायक के निर्देशन में दल के कलाकार नाविक, राधा-कृष्ण, आरती, फूलो बसंत जैसे पारंपरिक छऊ नृत्यों के साथ एक विशेष प्रस्तुति ‘माटीर मोनीषो’ (मिट्टी के मानव) भी करेंगे। यह नृत्य झारखंड के मेहनतकश किसानों को समर्पित है और भूमि, परिश्रम और प्रकृति के प्रति सम्मान की भावना को दर्शाता है। इसके अलावा दल द्वारा पारंपरिक पताका नृत्य भी प्रस्तुत किया जाएगा।
देशभर से कलाकार होंगे शामिल
इस कलादल में सरायकेला और झारखंड के विभिन्न हिस्सों के साथ-साथ अन्य राज्यों के कलाकार भी शामिल हैं। इनमें—गुरु तपन कुमार पटनायक, देवराण दुबे, गोपाल पटनायक, गणेश परिक्षा, प्रदीप कुमार कवि, सुश्री कुसुमी पटनायक, श्रीमती गीतांजली हेम्ब्रम, रजतेन्द्र रथ, दसरा महतो, प्रफुल्य नायक, ठंगरु मुरखी, और गंभीर महतो शामिल हैं।इसके अतिरिक्त, कोलकाता से सौमित्रा भौमिक, रांची से बरखा लकड़ा, मेदिनीपुर से अनन्या विश्वास, तथा ओडिशा से शुभश्री महंती भी इस दल का हिस्सा हैं।
छऊ नृत्य : सरायकेला की अमूल्य सांस्कृतिक धरोहर
गौरतलब है कि सरायकेला छऊ नृत्य भारत की तीन प्रमुख छऊ शैलियों (सरायकेला, पुरुलिया और मयूरभंज) में से एक है, जिसकी प्रसिद्धि अब अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंच चुकी है। यह नृत्य मुखौटों, नृत्यांगों और शारीरिक मुद्राओं के माध्यम से पौराणिक कथाओं, लोककथाओं और जीवन के विविध रंगों को अभिव्यक्त करता है।
गुरु तपन कुमार पटनायक ने बताया —“हमारा उद्देश्य सरायकेला छऊ नृत्य की परंपरा को नई पीढ़ी तक पहुंचाना है। गुजरात में यह प्रस्तुति न केवल झारखंड की कला को सम्मान दिलाएगी, बल्कि कलाकारों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बनेगी।”कार्यक्रम में छऊ नृत्य दल की यह प्रस्तुति झारखंड की लोकसंस्कृति को एक नई ऊंचाई देने का काम करेगी।
