UN Business and Human Rights Forum में जादूगोडा के परमाणु कचरे और आदिवासी विस्थापन का मुद्दा जोरदार तरीके से उठाया

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देश /विदेश (जेनेवा ):संयुक्त राष्ट्र के जेनेवा स्थित यूरोपियन मुख्यालय में आयोजित UN Business and Human Rights Forum की 14वीं वार्षिक बैठक में झारखंड के युवा नेता और सामाजिक कार्यकर्ता कुणाल षडंगी ने जादूगोडा के आदिवासी समुदायों पर यूरेनियम कॉरपोरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड (UCIL) की गतिविधियों के गंभीर प्रभावों को वैश्विक मंच पर मजबूती से रखा।यह प्रतिष्ठित सम्मेलन विश्व के 50 से अधिक देशों के प्रतिनिधियों की उपस्थिति में व्यापार, विकास और मानवाधिकारों के जटिल संबंधों पर केंद्रित है, जहाँ विशेष रूप से विकासशील देशों में खनन और औद्योगिक गतिविधियों से जुड़े मानवाधिकार उल्लंघनों पर गहन चर्चा हो रही है।

UCIL की माइनिंग से आदिवासी समुदायों पर पड़े प्रभाव को अंतरराष्ट्रीय मंच पर उठाया

कुणाल षडंगी ने अपने संबोधन में बताया कि जादूगोडा में पिछले लगभग 60 वर्षों से चल रही यूरेनियम माइनिंग ने संथाल, हो, मुंडा और उरांव समुदायों के जीवन पर गंभीर प्रभाव छोड़ा है।उन्होंने बताया कि लगातार हो रहा विस्थापन,रेडिएशन से जुड़े स्वास्थ्य संबंधी जोखिम,और पर्यावरणीय क्षति आज भी स्थानीय समुदायों के सामने भयावह रूप में मौजूद है।उन्होंने कहा कि यह मुद्दा वर्षों से अंतरराष्ट्रीय मंचों पर चर्चा में रहा है लेकिन अभी तक स्थानीय लोगों को न्याय नहीं मिल सका है।

सूचना के अभाव पर गंभीर सवाल

षडंगी ने UCIL के कामकाज में पारदर्शिता की कमी को भी रेखांकित किया।उन्होंने बताया कि Official Secrets Act, 1923 के कारण और RTI Act, 2005 के दायरे से सुरक्षा-संबंधी सूचनाओं को बाहर रखने के चलते UCIL की सालाना क्षमता, वास्तविक उत्पादन और रेडिएशन से हुए नुकसान से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियाँ आज भी सार्वजनिक नहीं हैं।उन्होंने कहा कि यह स्थिति स्वतंत्र पत्रकारों, शोधकर्ताओं और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के काम को गंभीर रूप से बाधित करती है।

राज्य सरकार की भूमिका और सीमाएँ

कुणाल ने यह भी स्पष्ट किया कि भारत के परमाणु ऊर्जा अधिनियम के मुताबिक राज्य सरकारों को परमाणु संयंत्रों और परमाणु संबंधी गतिविधियों पर कोई अधिकार नहीं है।सभी अधिकार केवल केंद्र और उसके उपक्रमों के पास हैं।उन्होंने कहा कि झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन लगातार यह मांग उठाते रहे हैं कि“आदिवासियों की ज़मीन उनकी सबसे बड़ी पूँजी है। किसी भी उद्योगीकरण का समर्थन नहीं किया जा सकता जो उनके अधिकारों और अस्तित्व की रक्षा न कर सके।”षडंगी ने कहा कि इस दृष्टिकोण से देखा जाए तो राज्य सरकार की सीमाएँ स्पष्ट हैं, और ऐसे में संयुक्त राष्ट्र जैसे वैश्विक निकायों का हस्तक्षेप और निगरानी बेहद आवश्यक है।

UN Working Group की अध्यक्ष से विशेष मुलाक़ात

सम्मेलन के दौरान कुणाल षडंगी ने संयुक्त राष्ट्र व्यापार एवं मानवाधिकार कार्य समूह की अध्यक्ष पचामोन योफानथोंग से मुलाक़ात की।इस मुलाक़ात में उन्होंने जादूगोडा की पूरी स्थिति,आदिवासी समुदायों के स्वास्थ्य और अधिकारों तथा खनन गतिविधियों की पारदर्शिता की कमी पर विस्तार से चर्चा की।उन्होंने यह आशा व्यक्त की कि उनके सुझावों को फोरम के अंतिम मसौदे में शामिल किया जाएगा और जल्द ही इस गंभीर मानवाधिकार मुद्दे पर ठोस अंतरराष्ट्रीय पहल देखने को मिलेगी।

झारखंड के लिए एक महत्वपूर्ण कदम

कुल मिलाकर देखा जाए तो कुणाल षडंगी की यह पहल न सिर्फ़ जादूगोडा के प्रभावित परिवारों की आवाज़ है बल्कि पूरे झारखंड की पहचान—आदिवासी अस्तित्व, पर्यावरणीय अधिकार और न्याय—के लिए वैश्विक स्तर पर एक महत्वपूर्ण संदेश भी है।झारखंड के संवेदनशील परमाणु खनन क्षेत्रों से जुड़े मुद्दों का संयुक्त राष्ट्र जैसे बड़े मंच पर उठना आने वाले दिनों में नई नीतिगत चर्चाओं और हस्तक्षेपों का मार्ग प्रसस्त कर सकता है।

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