
जमशेदपुर। टाटा लीज नवीनीकरण में आदिवासियों के हितों की कथित अनदेखी और राज्य में अब तक ‘पेसा कानून’ लागू न होने के विरोध में सोमवार को जमशेदपुर की सड़कों पर भारी जन-आक्रोश देखने को मिला। ‘झारखंड अस्मिता बचाओ मोर्चा’ के बैनर तले सैकड़ों प्रदर्शनकारियों ने जिला मुख्यालय (डीसी ऑफिस) पर जोरदार प्रदर्शन किया। इस दौरान मोर्चा के नेताओं ने राज्य की ‘अबुआ सरकार’ सहित आदिवासी मंत्रियों और विधायकों को जमकर आड़े हाथों लिया।
“आदिवासी विधायकों ने किया हितों से समझौता”
प्रदर्शन के दौरान मोर्चा के वक्ताओं ने राज्य के आदिवासी जनप्रतिनिधियों के खिलाफ तीखी बयानबाजी की। उन्होंने आरोप लगाया कि जिस जल, जंगल और जमीन की रक्षा के संकल्प के साथ झारखंड राज्य का गठन हुआ था, आज उसी राज्य के आदिवासी मुख्यमंत्री, मंत्री और विधायक चंद पूंजीपतियों के इशारे पर आदिवासियों के भविष्य का सौदा कर रहे हैं।मोर्चा के नेताओं ने कहा, “यह बेहद शर्मनाक है कि आदिवासी हित की बात कर सत्ता में आए लोग आज सत्ता के गलियारों में बैठकर अपने ही समाज की अनदेखी कर रहे हैं। टाटा लीज के नवीनीकरण में स्थानीय आदिवासियों के अधिकारों को ताक पर रख दिया गया है।”
पेसा कानून लागू न होना सरकार की विफलता
आंदोलनकारियों ने राज्य में पेसा (पंचायत उपबंध – अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) कानून को अब तक पूर्ण रूप से लागू न किए जाने पर सरकार को घेरा। उन्होंने कहा कि पेसा कानून आदिवासियों का संवैधानिक सुरक्षा कवच है, लेकिन सरकार इसे जानबूझकर ठंडे बस्ते में डाले हुए है ताकि पूंजीपतियों को जल, जंगल और जमीन सौंपने में कोई अड़चन न आए।
मोर्चा की मुख्य मांगें और आरोप
टाटा लीज नवीनीकरण: लीज समझौते में आदिवासियों के लिए सम्मानजनक हिस्सेदारी और उनके अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित की जाए।
पेसा कानून: राज्य में अविलंब पेसा नियमावली को लागू कर ग्राम सभाओं को सशक्त बनाया जाए।
अस्मिता की रक्षा: आदिवासी बहुल क्षेत्रों में जमीन के मालिकाना हक के साथ कोई छेड़छाड़ न हो।
उग्र आंदोलन की चेतावनी
प्रदर्शन के अंत में मोर्चा ने जिला प्रशासन के माध्यम से सरकार को स्पष्ट चेतावनी दी। उन्होंने कहा कि यदि सरकार ने आदिवासियों के मान-सम्मान और उनके संवैधानिक अधिकारों के साथ समझौता करना बंद नहीं किया, तो आने वाले दिनों में पूरे राज्य में उग्र आंदोलन छेड़ा जाएगा।मोर्चा के सदस्यों ने दो टूक शब्दों में कहा, “हम अपनी जमीन और अपनी अस्मिता को पूंजीपतियों की भेंट नहीं चढ़ने देंगे। अगर सरकार नहीं चेती, तो उसे गांव-गांव में कड़ा विरोध झेलना होगा।”
