
जमशेदपुर:शहर के भक्तिमय वातावरण में आज से सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ का भव्य शुभारंभ हुआ। कथा के प्रथम दिन व्यास पीठ से आचार्य श्री नीरज मिश्रा जी ने भागवत महात्म्य का मर्मस्पर्शी वर्णन किया। उन्होंने श्रद्धालुओं को बताया कि भागवत केवल एक ग्रंथ नहीं, बल्कि साक्षात श्रीहरि का स्वरूप है, जिसका श्रवण मात्र मनुष्य के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करता है।
लालच है दुखों का मूल कारण
आचार्य नीरज मिश्रा ने अपने प्रवचन में जीवन के व्यावहारिक पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि जो व्यक्ति अपने जीवन में लालच (लोभ) करता है, वह कभी भी सुखी नहीं रह सकता। संतों ने भागवत महापुराण में स्पष्ट किया है कि केवल वही व्यक्ति कथा श्रवण का पुण्य प्राप्त करता है, जिसके भीतर समर्पण और सत्य के प्रति निष्ठा होती है।
‘सच्चिदानंद’ की अनूठी व्याख्या
कथा के दौरान आचार्य जी ने ‘सच्चिदानंद’ शब्द के अर्थ को अत्यंत सरल और प्रभावी ढंग से समझाया।सत्य कभी असत्य नहीं हो सकता और असत्य कभी सत्य का स्थान नहीं ले सकता। हमारे जीवन का मूल लक्ष्य ‘सत्य’ की प्राप्ति होना चाहिए। चित का अर्थ है प्रकाश (ज्ञान)। जो अज्ञानता के अंधकार को मिटाकर जीवन को प्रकाशित कर दे, वही प्रभु का स्वरूप है।’आनंद’ एक ऐसा शब्द है जिसका कोई विलोम नहीं होता। आनंद का वर्णन शब्दों में संभव नहीं है; यह केवल अनुभव की वस्तु है। जो आनंद को प्राप्त कर उसी में समा गया, वही वास्तव में ‘भगवत’ हो गया।
अच्छे कर्मों पर दें ध्यान, फल की इच्छा छोड़ें
आचार्य जी ने गीता के सार को दोहराते हुए कहा कि संपूर्ण सृष्टि उस परमपिता परमेश्वर के विधान से चलती है। हमें केवल अपने अच्छे कर्मों पर ध्यान देना चाहिए और फल की चिंता प्रभु पर छोड़ देनी चाहिए।
भक्तिमय अनुष्ठान और आरती
कथा के शुभारंभ से पूर्व विधि-विधान के साथ श्रीमद्भागवत महापुराण जी को आसन ग्रहण कराया गया। इसके पश्चात भगवान को भोग लगाया गया। कथा के दौरान पूरा पांडल ‘राधे-राधे’ के जयकारों से गूंज उठा। शाम को भव्य आरती का आयोजन हुआ, जिसमें भारी संख्या में श्रद्धालुओं ने हिस्सा लिया। आरती के पश्चात भक्तों के बीच प्रसाद का वितरण किया गया।
इनका रहा सराहनीय योगदान
इस धार्मिक अनुष्ठान को सफल बनाने में मुख्य रूप से शत्रुघ्न प्रसाद, संजय गुप्ता, रूपा गुप्ता, स्वाति गुप्ता, अमर भूषण, देवाशीष झा सहित अन्य गणमान्य लोगों और सेवादारों का विशेष योगदान रहा।
