
जमशेदपुर: शिक्षा के क्षेत्र में भारतीय मूल्यों और प्राचीन ज्ञान को आधुनिक पाठ्यक्रम से जोड़ने के उद्देश्य से, डीबीएमएस कॉलेज ऑफ एजुकेशन द्वारा मंगलवार को ‘भारतीय ज्ञान प्रणाली’ पर आधारित एक दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का सफल आयोजन किया गया। इस कार्यशाला में जमशेदपुर और आसपास के विभिन्न सरकारी विद्यालयों के प्रधानाध्यापकों और शिक्षकों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।
पारंपरिक दीप प्रज्वलन से हुआ शुभारंभ
कार्यक्रम का उद्घाटन मुख्य अतिथि के रूप में ओडिशा से पधारे विशेषज्ञ दिलीप मंगराज, कॉलेज की गवर्निंग बॉडी के सेक्रेटरी सतीश सिंह, प्राचार्या डॉ. जूही समर्पिता और उप-प्राचार्या डॉ. मोनिका उप्पल ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित कर किया। अतिथियों ने भारतीय ज्ञान परंपरा की प्रासंगिकता पर जोर देते हुए इसे वर्तमान शिक्षा प्रणाली की आवश्यकता बताया।
NEP-2020 और भारतीय ज्ञान का संगम
स्वागत भाषण देते हुए प्राचार्या डॉ. जूही समर्पिता ने कार्यशाला के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा भारतीय ज्ञान प्रणाली राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का एक अनिवार्य स्तंभ है। यह केवल प्राचीन तथ्यों का संग्रह नहीं है, बल्कि एक ऐसी पद्धति है जो विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास और उनमें नैतिक मूल्यों को सुदृढ़ करने का कार्य करती है। शिक्षकों के लिए यह समझना आवश्यक है कि वे कैसे अपनी कक्षाओं में इन पारंपरिक मूल्यों को आधुनिक विज्ञान के साथ जोड़ सकते हैं।”
शिक्षकों को मिला प्रशिक्षण
कार्यशाला के दौरान विभिन्न तकनीकी सत्रों में विशेषज्ञों ने यह साझा किया कि किस प्रकार गणित, विज्ञान और भाषा जैसे विषयों को भारतीय संदर्भों और ऐतिहासिक उदाहरणों के माध्यम से सरल और प्रभावी बनाया जा सकता है। उपस्थित शिक्षकों ने चर्चा में भाग लिया और अपनी जिज्ञासाओं का समाधान किया।
कुशल मंच संचालन
कार्यक्रम का सुव्यवस्थित और कुशल संचालन कॉलेज की असिस्टेंट प्रोफेसर नेहा भारती द्वारा किया गया। उन्होंने कार्यशाला के विभिन्न चरणों के बीच समन्वय स्थापित करते हुए प्रतिभागियों को विषय की गंभीरता से जोड़े रखा।
निष्कर्ष और संकल्प
कार्यशाला के अंत में वक्ताओं ने इस बात पर जोर दिया कि भारत को ‘विश्व गुरु’ बनाने की दिशा में भारतीय ज्ञान प्रणाली का पुनरुत्थान एक निर्णायक कदम है। सहभागी शिक्षकों ने संकल्प लिया कि वे कार्यशाला से प्राप्त अनुभवों को अपने-अपने विद्यालयों में लागू करेंगे ताकि नई पीढ़ी अपनी जड़ों से जुड़कर वैश्विक चुनौतियों का सामना कर सके।
