
जमशेदपुर: जलवायु परिवर्तन और बढ़ते प्रदूषण की चुनौतियों के बीच राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान जमशेदपुर से एक क्रांतिकारी खबर सामने आई है। संस्थान के मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग में किए गए एक अग्रणी शोध ने ‘कार्बन-कैप्चर एंड स्टोरेज’ तकनीक के माध्यम से बिजली संयंत्रों को पूरी तरह ‘ग्रीन’ बनाने का रास्ता दिखाया है। इस तकनीक के इस्तेमाल से पावर प्लांट की चिमनी से जहरीले धुएं के बजाय केवल भाप निकलेगी, जिससे पर्यावरण में ‘जीरो कार्बन’ उत्सर्जन होगा।
जुगसलाई के लाल वसीम अकरम को मिली पीएचडी
इस अभूतपूर्व शोध के लिए जमशेदपुर के जुगसलाई निवासी वसीम अकरम को पीएचडी की उपाधि देने की सिफारिश की गई है। वसीम ने अपना यह शोध प्रोफेसर संजय और डॉ. एम.ए. हसन के विशेषज्ञ मार्गदर्शन में पूरा किया। उनके शोध की गुणवत्ता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं (जर्नल्स) में उनके तीन शोध लेख प्रकाशित हो चुके हैं।
क्या है ‘प्री-कंबशन सीसीएस’ तकनीक?
शोधकर्ता वसीम अकरम का कार्य ‘प्री-कंबशन सीसीएस टेक्नोलॉजी’ के अभिनव अनुप्रयोग पर केंद्रित है।शून्य उत्सर्जन: यह तकनीक ईंधन जलने से पहले ही कार्बन को अलग कर लेती है, जिससे उत्सर्जन शून्य हो जाता है।AQI में सुधार: इससे वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) में बड़ा सुधार होगा, जिससे समाज को सीधे स्वास्थ्य लाभ मिलेगा।वेस्ट से वेल्थ: कैप्चर की गई $CO_2$ को फेंकने के बजाय उसे औद्योगिक उत्पादों में बदलकर राजस्व (Revenue) उत्पन्न किया जा सकेगा, जो ‘सर्कुलर इकोनॉमी’ का आधार है।
निदेशक प्रो. गौतम सूत्रधार ने दी बधाई
एनआईटी जमशेदपुर के निदेशक प्रो. गौतम सूत्रधार ने शोधकर्ता और उनकी टीम को बधाई देते हुए कहा कि यह शोध भारत के ‘विकसित भारत-2047’ के लक्ष्यों को प्राप्त करने में मील का पत्थर साबित होगा। उन्होंने जोर दिया कि यह तकनीक भारत को ‘ग्रीन सर्कुलर इकोनॉमी’ में वैश्विक नेतृत्व दिला सकती है।
