
जमशेदपुर:सामाजिक संस्था डॉ. अंबेडकर एसटी, एससी, ओबीसी एंड माइनॉरिटी वेलफेयर समिति ने देश में पिछले सप्ताह घटी तीन घटनाओं को लेकर जिम्मेदारों पर कार्रवाई की मांग करते हुए शनिवार को डीसी ऑफिस के सामने धरना दिया। प्रदर्शन के बाद, समिति के नेताओं के प्रतिनिधिमंडल ने राष्ट्रपति के नाम एक ज्ञापन उपायुक्त को सौंपा, जिसमें वंचित समूहों के प्रति बढ़ते आक्रोश और उत्पीड़न पर चिंता व्यक्त की गई।
तीन प्रमुख घटनाओं पर जताया आक्रोश
समिति ने अपने ज्ञापन में कहा कि पिछले दिनों घटी तीन घटनाओं ने देश के वंचित समूहों (अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक वर्ग) को आक्रोशित, उद्वेलित एवं स्तब्ध कर दिया है। ये घटनाएं निम्न प्रकार हैं:1. मुख्य न्यायाधीश पर जूता फेंकना:गत 6 अक्टूबर 2025 को देश के सर्वोच्च न्यायालय में हुई घटना, जिसमें अधिवक्ता राकेश किशोर द्वारा चीफ जस्टिस बीआर गवई पर उनके न्यायालय में जूता फेंका गया।2.सांसद पर हमला: पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी में अनुसूचित जनजाति के सांसद खोगेन मुर्मू पर भीड़ ने हमला किया।3. आईपीएस अधिकारी की आत्महत्या: हरियाणा राज्य में अनुसूचित जाति वर्ग के भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) अधिकारी वाई पूरन कुमार को गोली मारकर आत्महत्या करनी पड़ी। समिति ने आरोप लगाया कि स्वर्गीय कुमार का उत्पीड़न वहां के डीजीपी और एक एसपी कर रहे थे, और राज्य सरकार के संज्ञान में तथ्य आने के बावजूद डीजीपी के रवैये में कोई बदलाव नहीं आया।
रूढ़िवादी विचारधारा पर उठाए सवाल
समिति ने कहा कि सदियों की सड़ी-गली सामाजिक व्यवस्था से मुक्ति वंचित समूहों को देश की आजादी और संविधान के लागू होने से मिली है। लेकिन, दुर्भाग्य है कि समाज में रूढ़िवादी विचारधारा के लोग यथास्थिति बनाए रखना चाहते हैं और समय के साथ उनकी सोच में बदलाव नहीं आया है।संस्था ने साफ कहा कि मानववादी, समानता, न्याय एवं स्वतंत्रता की भावना को मजबूती देने में रूढ़िवादी परंपराएं और मान्यताएं बाधक हैं। उन्होंने उन सभी मान्यताओं और इतिहास से दूर रहने की अपील की जो समाज के ताना-बाना में बिखराव पैदा करती हैं।
चीफ जस्टिस पर हमले के पीछे सामंतवादी सोच का आरोप
समिति ने सर्वोच्च न्यायालय की घटना पर अपनी गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि क्योंकि चीफ जस्टिस की कुर्सी पर अल्पसंख्यक बौद्ध धर्म का अनुयाई (जो पूर्व में धर्म परिवर्तन से पहले दलित वर्ग से संबंधित रहा) बैठा है, जिसे सामंतवादी, रूढ़िवादी, संविधान विरोधी, परंपरावादी यथास्थितिवादी सोच के लोग अंतर्मन से स्वीकार नहीं कर पा रहे थे।समिति ने आरोप लगाया कि सोशल मीडिया पर अधिवक्ता राकेश किशोर के समर्थन में जारी मीम और अभिकथन इस बात की पुष्टि करते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म यह दर्शा रहे हैं कि अकाउंट होल्डर को निश्चय ही बड़ी शक्तियों, संस्थान एवं सत्ता का संरक्षण प्राप्त है, जिससे उन्हें न्यायिक कार्रवाई का रत्ती भर भी भय नहीं है। समिति ने इन जिम्मेदारों के खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई करने की मांग की, क्योंकि ऐसी घटनाओं से पूरे विश्व में भारत की जगहंसाई हो रही है।
