
जमशेदपुर: लौहनगरी में आवारा कुत्तों का आतंक थमने का नाम नहीं ले रहा है। शहर के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल, एमजीएम मेडिकल कॉलेज अस्पताल में कुत्ता काटने के मरीजों की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि दर्ज की गई है। आंकड़ों के अनुसार, इमरजेंसी और ओपीडी मिलाकर रोजाना औसतन 70 से 80 मरीज एंटी-रेबीज वैक्सीन लगवाने पहुंच रहे हैं।
एक महीने में बिगड़े हालात
अस्पताल प्रबंधन के अनुसार, पिछले एक महीने से कुत्ता काटने के मामलों में तेजी आई है। आलम यह है कि अस्पताल के संबंधित काउंटर पर सुबह से ही पीड़ितों की लंबी कतारें देखी जा रही हैं। इनमें छोटे बच्चों और बुजुर्गों की संख्या काफी अधिक है। शहर के साकची, मानगो, जुगसलाई और बारीडीह जैसे घनी आबादी वाले इलाकों से सबसे ज्यादा मामले सामने आ रहे हैं।
सर्दियों में क्यों बढ़ जाता है खतरा?
अस्पताल कर्मियों और विशेषज्ञों का मानना है कि कड़ाके की ठंड कुत्तों के व्यवहार में आक्रामकता का एक बड़ा कारण है। अस्पताल के एक वरिष्ठ कर्मचारी ने बताया सर्दियों के मौसम में कुत्ते अक्सर भोजन और गर्माहट की तलाश में झुंड में रहते हैं। इस दौरान वे अधिक चिड़चिड़े और आक्रामक हो जाते हैं। जरा सी हलचल या किसी के करीब आने पर वे हमला कर देते हैं। यही कारण है कि ठंड बढ़ते ही ‘डॉग बाइट’ के मामलों में बढ़ोतरी देखी जा रही है।
अस्पताल में वैक्सीन की स्थिति
मरीजों की बढ़ती संख्या को देखते हुए एमजीएम अस्पताल प्रशासन सतर्क है। फिलहाल अस्पताल में एंटी-रेबीज वैक्सीन का पर्याप्त स्टॉक उपलब्ध है, लेकिन मरीजों का भारी दबाव स्वास्थ्य कर्मियों के लिए चुनौती बना हुआ है। डॉक्टरों ने सलाह दी है कि कुत्ता काटने के बाद किसी भी तरह की झाड़-फूंक या घरेलू नुस्खों के बजाय सीधे अस्पताल आएं, क्योंकि रेबीज एक जानलेवा बीमारी है।
नगर निकाय की कार्यशैली पर सवाल
कुत्ता काटने के बढ़ते मामलों ने जमशेदपुर अक्षेस और मानगो नगर निगम की कार्यशैली पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। स्थानीय निवासियों का कहना है कि आवारा कुत्तों की नसबंदी और उनके आतंक को कम करने के लिए प्रशासन द्वारा कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे हैं, जिसका खामियाजा आम जनता को भुगतना पड़ रहा है।
