झारखंड के प्रणेता शहीद निर्मल महतो की 75वीं जयंती: समाधि स्थल और चमरिया गेस्ट हाउस में उमड़ी भीड़; दलगत राजनीति से ऊपर उठकर नेताओं ने दी श्रद्धांजलि

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जमशेदपुर: झारखंड अलग राज्य आंदोलन के प्रणेता और ऊर्जावान नेतृत्व के प्रतीक रहे शहीद निर्मल महतो की 75वीं जयंती गुरुवार को पूरे राज्य के साथ-साथ लौहनगरी जमशेदपुर में श्रद्धा और गौरव के साथ मनाई गई। इस अवसर पर कदमा स्थित उनके समाधि स्थल और बिष्टुपुर स्थित शहादत स्थल (चमरिया गेस्ट हाउस) पर राजनीतिक और सामाजिक संगठनों का तांता लगा रहा।

शहादत स्थल पर नम आंखों से दी गई श्रद्धांजलि

बिष्टुपुर स्थित चमरिया गेस्ट हाउस, जहां निर्मल महतो की गोली मारकर हत्या की गई थी, वहां सुबह से ही समर्थकों और नेताओं का जुटना शुरू हो गया। शहीद निर्मल महतो की बहू और ईंचागढ़ की विधायक सविता महतो ने शहादत स्थल पर पुष्पांजलि अर्पित की।इस अवसर पर झामुमो के केंद्रीय प्रवक्ता कुणाल षड़ंगी और विधायक मंगल कालिंदी ने भी श्रद्धासुमन अर्पित किए। नेताओं ने कहा कि निर्मल महतो का बलिदान झारखंड के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा है और उनके दिखाए मार्ग पर चलना ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

समाधि स्थल पर गूंजे ‘अमर रहे’ के नारे

कदमा के उलियान स्थित शहीद निर्मल महतो के समाधि स्थल पर आयोजित कार्यक्रम में झामुमो नेता मोहन कर्मकार सहित सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने माल्यार्पण किया। पूरे क्षेत्र में ‘वीर शहीद निर्मल महतो अमर रहे’ के नारे गूंजते रहे। कार्यकर्ताओं ने उनके संघर्षों को याद करते हुए संकल्प लिया कि जिस समृद्ध झारखंड का सपना उन्होंने देखा था, उसे साकार किया जाएगा।

टूटीं राजनीतिक दीवारें: सांसद विद्युत वरण महतो ने साझा की यादें

निर्मल महतो की जयंती पर एक सुखद तस्वीर यह भी दिखी कि उन्हें याद करने के लिए दलगत राजनीति की दीवारें टूट गईं। जमशेदपुर के सांसद विद्युत वरण महतो ने भी उन्हें भावपूर्ण श्रद्धांजलि दी। सांसद ने उनके जीवन से प्रेरणा लेने की बात कही और उन्हें झारखंड आंदोलन का अग्रणी नायक बताया।शहीद निर्मल महतो के साथ बिताए गए समय को याद करते हुए सांसद भावुक नजर आए। उन्होंने कहा कि निर्मल दा का व्यक्तित्व इतना विशाल था कि वे हर वर्ग और दल के लोगों के बीच लोकप्रिय थे।

झारखंड आंदोलन के ‘शिखर पुरुष’

75वीं जयंती के मौके पर वक्ताओं ने कहा कि निर्मल महतो केवल एक नेता नहीं, बल्कि एक विचार थे जिन्होंने दबे-कुचले लोगों की आवाज को दिल्ली के गलियारों तक पहुँचाया। उनके संघर्ष की बदौलत ही आज झारखंड एक अलग पहचान के साथ देश के मानचित्र पर है।समाधि स्थल पर आयोजित कार्यक्रम के दौरान विभिन्न गांवों से आए ग्रामीणों ने भी अपने प्रिय नेता को नमन किया और पारंपरिक वाद्ययंत्रों के साथ उन्हें याद किया।

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